सुकून की तलाश

ख़ुद से मिलने की फ़ुर्सत तलाशता हूँ,
बीते हुए लम्हों को फिर से जीना चाहता हूँ।

वक़्त की कमी है,
मेरी कोई ग़लती नहीं,
मैं भी तुम्हारी तरह खुलकर जीना चाहता हूँ।

कोई शौक़ नहीं मुझे भी भागने का,
बस कुछ मसले हैं, उन्हें ही हल करना चाहता हूँ।

सुबह होती है, होती है शाम भी,
मैं भी उगता और डूबता हुआ सूरज देखना चाहता हूँ।

शिकायतें नहीं हैं मुझे किसी से,
बस ख़ुद की कुछ ग़लतियाँ सुधारना चाहता हूँ।

दरियादिली का तो पता नहीं,
पर मैं भी कुछ मुस्कुराहटें बाँटना चाहता हूँ।

मैं भी हूँ राहगीर इस जीवन के सफ़र का,
मैं भी हँसकर ये सफ़र काटना चाहता हूँ।
मैं भी कुछ लम्हे सुकून के, सुकून से काटना चाहता हूँ।
मैं भी कुछ लम्हे सुकून के, सुकून से काटना चाहता हूँ।

                               अभिषेक सेंगर

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