विजय पथ की ओर


रोना-धोना क्यों?  
क्यों ये मातम?  
क्यों ये शोक?  
पा लो जो तुम पाना चाहो,  
कौन रहा है तुम्हें रोक?

बल-बुद्धि जो सब है तुममें,  
तुम उनका संधान करो।  
केवल बाधाएँ ही नहीं पथ पर,  
हंसी-ठिठोली अपनेपन का भी पान करो।

कदम तुम्हारे ऐसे हों,  
महाभारत के भीमसेन के जैसे हों।  
जहाँ धरो हुंकार हो,  
सत्कर्मों की जय-जयकार हो।

जब समय उचित हो,  
उद्देश्य निहित हो।  
हो समर्पित, तब सब कुछ ख़ुद का वार दो।  
प्राप्ति नहीं होती फल की यूँ ही,  
तुम विजय पथ को अपने कर्मों का आहार दो।

                               अभिषेक सेंगर

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